Sunday, February 4, 2018

कुछ जानी पहचानी किरणों की
चादर लपेट कर,
तुम्हारी याद आई थी आज सुबह.
मेरी तरह,
मेरी अलसाई हुई पलकों का भी मन था,
कि फोन में तेरी तस्वीर देख लूँ एक बार.
पर कल रात भर बात कर के,
डिसचार्ज पडा था बगल में.
मन मार के उठा था मैं बिस्तर से,
कल रात की तुम्हारी हँसी.
अब भी करवटें ले रही है मेरी यादों में,
मन ही मन मुस्कुराते हुए,
मैने रेडियो ऑन कर दिया.
याद है तुम्हे वो पिछली सर्दी की रात,
जब मैं वापस कॉलेज जा रहा था,
और मेरी ट्रेन कैंसेल हो जाई थी.
बहोत मन था तुमसे मिलने का उस बार,
पर हिम्मत नही जुटा पाया था कहने की.
दो रातें हमने कितने ही गाने सुने थे.
उन गानों के बहाने,
मैने ओर तुमने,
कितनी ही अनकही कही थी.
बिना मिले ही तुमसे,
बहोत पास लग रही थी तूम.
यहाँ पर,
ज़्यादा हिन्दी रेडियो स्टेशन नहीं हैं,
फिर भी अच्छा लग रहा है सुनके.
कई दिन हो गए हैं,
कुछ लिखे हुए तुम्हारे लिए,
गाना भी तो नही आता हमें,
कि कुछ किसी ओर का लिखा हुआ
सुना दूं गा के.
फिलहाल "हमारा" गाना आ रहा है रेडियो पर,
ओर इन्तेजार कर रहा हूँ मैं तुम्हारा.
जल्दी से आओ,
ओर ले चलो मुझे, ऐसी जगह.
जहाँ तू मुस्कुराए,
क्योंकी मेरी मंज़िल वहीं.

Adarsh Verma 

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